17 April 2024

जब मैं एक ट्रक मैं फंस गया था (पाकिस्तान से)

 



जब मैं एक ट्रक मैं फंस गया था

(पाकिस्तान से)


में रिनालाख़ुर्द गाँव के एक मुतवस्सत तबक़े के लोगों के रेहायशी इलाक़े मैं रहता हूँ। मैं आप को अपनी आपबीती २६ साल बाद पाकिस्तान से सुनाने जा रहा हूँ, जब मैं छोटा था। एक दिन मेरी नानी ने मुझे कुछ घर के सामान के बारे मैं जो मेरे मामूँ दुबई से लाए थे, मालूमात लेने केलिये भेजा। मैं वैगन मैं बैठ कर अपने मामूँ के पास लाहोर . कोटलखपत उनके घर पुँहचा। वहाँ से घर के सामान के बारे मैं दरयाफ़्त किया। मेरे मामूँ कोटलखपत की एक मिल मैं काम कर्ते थे। सामान के बारे मैं पूछने के बाद मैं वहीं से सीधा अपनी नानी के घर चला गया, वो भी कोटलखपत मैं रहती हैं।

 

नानी मुझ से मिल कर बुहत ख़ुश हुईं। एक दिन नानी के घर रुकने के बाद मैं अपने घर अपने गाँव रीनालाख़ुर्द जाने केलिये बाहिर निकला, बाहिर निकल कर मैं ने सोचा बस का किराया बचाने केलिये किसी कार से लिफ़्ट लेनी चाहिये। चुँके बस वालों के हिसाब से सफ़र लम्बा था इसि लिये मैं ने एक कार से लिफ़्ट माँगी। ड्राएवर ने मुझे बच्चा देख कर गाड़ी मैं बिठा लिया। हम कोटलखपत से मुल्तान रोड मुसलिम टाऊन के इलाक़े से वाहदत रोड के ज़रिये पुँहचे ओर अपनी मंज़िल कि जानिब रवाना होगय।

 

मुल्तान रोड पर पत्तोकी का गाँव करास कर्ने के बाद बदक़िसमती से हमारी कार सामने से आने वाले एक बड़े ट्रक से टक्रा गई । गाड़ी का शीशा टूट गया। गाड़ी के ड्रायवर का तो कुछ पता ना चल सका कह वह ज़िन्दा बचा या नहीं। ट्रक चूँके गाड़ी से बुहत बड़ा होता है, इसी लिये उस्का पूरा बॉनिट इंजन समेत कार मैं घुस गया और मैं एक ज़ोरदार झटके से उछल कर ट्रक के इंजन मैं चला गया। गाड़ी ट्रक के बॉनिट मैं बुरी तरहा पैवस्त होगई। उस वक़्त मुल्तान रोड सिंगल हुआ कर्ती थी। ट्रक ड्रायवर मौक़े से ट्रक समेत फ़रार होगया। गाड़ी तो वहीं रह गई लेकिन मैं इंजन से वाहिर ना निकल सका। अब पता नहीं ट्रक किस सिम्त मैं जारहा था और मुझे किस सिम्त मैं जाने था कुछ होश ना रहा। शायद ट्रक ड्रायवर ने उस का रुख़ तब्दील कर लिया था ताके भाग सके। मैं आप को ये बताता चलूँ के उस ज़माने मैं लाहोर शहर की आबादी ब्राय नाम ही थी। हर तरफ़ सुनसान ही सुनसान रहता था, उस वक़्त कोटलखपत भी एक गाँव की तरह था।

 

यह जून का महीना था। शदीद गर्मी के दिन थे। जितनी गर्मी बाहिर थी उस से कही ज़्यादा ट्रक के इंजन मैं थी। मेरी नाक और कानों से ख़ून बहने लगा। थोड़ी देर मैं मेरे सारे कपड़े ख़ून से भर गय। ट्रक का ड्रायवर मुसलसल ट्रक सुस्त रफ़्तारी से ट्रक चला रहा था। कियोंके ट्रकों की रफ़्तार इस से ज़्यादा नहीं हुआ कर्ती। शायद वो कराची की तरफ़ जारहा था। लेकिन मुझे तो अपने गाँव रीनालाख़ुर्द पुँहचने था। मेरा हादसा तो पत्तोकी गाँव क्ररास कर्ते ही हुआ था। पत्तोकी के फ़ौरन बाद शीनालाख़ुर्द आता है। मुझे कुछ कुछ होश आने लगा। मैं अपने गाँव के एक बड़े ज़मीन्दार के एक ग़रीब मज़ारे का बेटा था। " मज़ारे " ज़मीनों की हिफ़ाज़त करने वाले को कहते हैं। मेरि नाक कानों से मुसलसल ख़ून बह रहा था। मेरी आँखों से आँसू आने शुरु होगय थे। मुझे मेरे माँ बाप याद आने लगे। मैं उन का इकलोता बेटा हूँ। ट्रक का इंजन मेरे फंसने की वजा से बन्द होना शुरु होगया था। ड्रायवर भी उसे बार बार इस्टार्ट कर्ने लगा। मुझे अन्दर फंसे हुए दो दिन गुज़र चुके थे। मैं मुसलसल दो दिन से भूका प्यासा ट्रक के इंजन मैं फंसा रहा। मेरी आवाज़ भी अब दम तोड़ने लगी। इंजन के अन्दर बुहत शोर था। कानों के पर्दे तो पहले ही फट चुके थे और उन से मुसलसल ख़ून बह रहा था। अब गला भी धूआँ से बन्द होने लगा था। मैं चीख़ना चाह रहा था के "मुझे बाहिर निकालो", लेकिन आवाज़ इंजन के शोर की वजा से बाहिर नहीं जापा रही थी। मैं बार बार येही फ़िक़रा दुहराता रहा था के "मुझे बाहिर निकालो" के शायद कोई सुन ले और मुझे बचाले।

 

ट्रक का इंजन मेरे फंस्ने की वजा से अब ज़्यादा दफ़ा बार बार बन्द होने लगा था। जितनी दफ़ा बन्द होता था ड्रायवर उसे उतनी ही बार स्टार्ट कर्ता था और उतनी ही दफ़ा फ़ैन बैल्ट घूम्ने से मुझे भी उतनी ही बार शदीद तकलीफ़ होती थी। मेरा जिसम ज़ख़मों से छलनी होगया था। आँखैं ज़र्द पड़ चुकी थीं। मुझे बुख़ार होने लगा, मेरी उमर उस वक़्त सिरफ़ आठ साल थी। तीसरे दिन की रात होगई। आधी रात के कसी वक़्त अचानक ट्रक का इंजन एख झट्के से बन्द होगया। ड्रायवर उतरा और कसी बस मैं स्वार होकर क़रीब के कसी गाँव से एक मिस्त्री को ले आया। उस ने रात के अन्धेरे मैं एक घंटे मैं टार्च की रौशनी इंजन खोल लिया। टार्च की रौशनी मैं उस ने मुझे अन्दर फंसे हुए देखा ‌‌और कोशिश करके मुझे बाहिर निकाल लिया। मैं तीन दिनों से भूका प्यासा ट्रक के इंजन मैं फंसा रहा था। मेरी आँखों से अभी तक आँसू बैह रहे थे और आँखैं ज़र्द पड़ चुकी थीं। बुख़ार भी बुहत तेज़ होगया था।  नाक कानों से अभी तक ख़ून बह रहा था। आवाज़ तो गले कि बिलकुल बन्द होचुकी थी।

 

ट्रक ड्रायवर ने गब्राहट के आलम मैं एक गाड़ी से लिफ़्ट माँगी और मुझे हसपताल पुँहचा दिया। हसपताल पुँहच कर पता चला के यह तो समासट्टा गाँव का कोई हसपताल है। यह गाँव बहावलपूर शहर के बिलकुल क़रीब वाक़े है। जबके मेरा हादसा पत्तोकी गाँव क्रास कर्ते ही हुआ था। मुझे तो रीनालाख़ुर्द अपने गाँव पुँहचने था। मुझे अब सब कुछ याद आने लगा। मेरा इलाज हुआ। इस्तरह मुझे मेरी ज़िन्दगी मिल गई। मुझे सहत्याब होने मैं दस रोज़ लगे। बिलआख़िर दस रोज़ बाद मुझे हसपताल वालों ने अपनी अम्बूलैंस मैं डाल दिया और मुझे मेरे घर रीनालाख़ुर्द पुँहचादिया। माँ बाप मे मुझे देख कर अपने सीने से लगालिया। मेरी गुमशुदगी की रिपोर्ट भी एक हफ़्ता क़बल दर्ज क्राई गई थी। मैं अपने घर लौट आया था।


काशिफ़ फ़ारूक़

जून (1984)

री रिटन बाई मी ओन (04-12-2010)

फ़्राम पाकिस्तान

No comments:

Post a Comment